राष्ट्रीय सेवा योजना , स्थापना दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं


समाज सेवा के माध्यम से विध्यार्थियों के व्यक्तित्व विकास का पावन उद्देश्य लेकर राष्ट्रीय सेवा योजना के नाम से महात्मा गांधी जन्मशताब्दी वर्ष 24 सितम्बर 1969  एक लौ जली | तब  से निरंतर विभिन्न नवाचारों में ढलते हुए युवाओं का एक सैलाब साथ लेकर, रास्ट्रीय सेवा योजना आज एक विशाल मशाल की भॉंति युवाओं के जीवन को रोशन कर नया जीवन प्रदान करती जा रही है! महात्मा गाँधी चाहते थे कि छात्र देश के सामाजिक और आर्थिक अक्षमता के संबंध में, केवल चर्चा न करे बल्कि कुछ ऐसे रचनात्मक कार्य भी करे जिससे ग्रामीणों के जीवनस्तर को सामाजिक और आर्थिक दृष्टिकोण से उन्नत बनाया जा सके। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के प्रथम अध्यक्ष डॉ. राधाकृष्णन ने यह सिफारिश की थी कि शैक्षणिक संस्थाओं के छात्रों के माध्यम से राष्ट्रीय सेवा को प्रारंभ किया जाये जिससे छात्र और अध्यापकों के बीच सामंजस्य स्थापित हो। साथ ही शिक्षण संस्था और समाज परस्पर रचनात्मक कार्य करे।व्यक्तित्व विकास व समाज सुधार का यह कार्य रास्ट्रीय सेवा योजना के सिपाहियों के माध्यम से चल रहा है , नित नए आयाम स्थापित प्राप्त कर रहें  है !

राष्‍ट्रीय सेवा योजना राष्‍ट्र की युवा शक्ति के व्‍यक्‍तित्‍व विकास हेतु युवा कार्यक्रम एवं खेल मंत्रालय भारत सरकार द्वारा संचालित एक सक्रिय कार्यक्रम है। इसके गतिविधियों में भाग लेने वाले विद्यार्थी समाज के लोगों के साथ मिलकर समाज के हित के कार्य कर रहे है ।  विद्यार्थी जीवन से ही समाजपयोगी कार्यों में रत रहने से उनमें समाज सेवा या राष्‍ट्र सेवा के गुणो का विकास हुआ है।राष्ट्रीय सेवा योजना छात्र/छात्राओं को सृजनात्मक एवं रचनात्मक कार्यों के प्रति प्ररित कर समाज सेवा का अवसर प्रदान करती है और उनके व्यक्तित्व को निखारने एवं भविष्य में उन्हें कर्त्तव्यनिष्ठ, संवेदनशील तथा उपयोगी नागरिक के रूप में संवारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। राष्ट्रीय सेवा योजना से प्राप्त प्रमाण.पत्र स्वयं सेवकों के अच्छे भविष्य के निर्माण में सहायक हैं। छात्र शासकीय तथा गैर शासकीय सेवाओं में इन प्रमाण.पत्रों का प्रयोग कर हैं।
 

प्रतीक चिन्ह

राष्ट्रीय सेवा योजना के प्रतीक चिन्ह को उड़ीसा के सूर्य मंदिर के रथ चक्र को आधार बनाया गया। सूर्य मूलत: सृजन, संरक्षण, आवर्तन गतिशीलता तथा ऊर्जा का प्रतीक है जो काल को स्थान से परे जीवन को गतिशील बनाता है। प्रतीक चिन्ह यह दर्शाता है कि युवकों को ऊर्जावान होकर विश्व में परिवर्तन लाने और उसे उन्नत करने के लिए आठों प्रहर गतिमान रहना चाहिए। राष्ट्रीय सेवा योजना के स्वयं सेवक इस संकल्प के साथ प्रतीक चिन्ह संयुक्त बैंच को धारण करते हैं, कि वे दिन रात राष्ट्र की सेवा में उत्साह और जीवंतता से सक्रिय रहेंगे। 

  नॉट मी,बट यू ( मैं नहीं, तुम )

राष्ट्रीय सेवा योजना का अपना एक सिध्दांत वाक्य नॉट मी,बट यू ( मैं नहीं, तुम ) इस बात का प्रतीक है कि रासेयो का स्वयं सेवक नि:स्वार्थ सेवा की आवश्यकता का समर्थन करता हैं। वह दूसरे के दृष्टिकोण की सराहना करता है तथा सम्पादित कार्य का श्रेय स्वयं न लेकर, दूसरों का देता है।

राष्ट्रीय सेवा योजना का मूल लक्ष्य समाज सेवा के माध्यम से छात्रों के व्यक्तित्व का विकास करना है। इसी लक्ष्य को ध्यान में रखकर विद्यार्थियों से अपेक्षा है की जाती है कि वे जिस समाज में काम करते है, उसे समझने का प्रयास करें, समाज की आवश्यकताओं का अनुभव करें, उनकी कठिनाइयों का समझें और यथासंभव समस्या के समाधान के लिए सक्रिय हों। स्वयं में सामाजिक और नागरिक दायित्व बोध की भावना का विकास करें। शिक्षा का उपयोग व्यक्ति तथा समाज की कठिनाइयों के व्यावहारिक हल ढूंढने में करें। सामाजिक सहभागिता को गतिमान करने के लिए निपुणता प्राप्त करें। नेतृत्व के गुणों को धारण करें और प्रजातांत्रिक अभिवृत्ति स्वीकार करें, आपातकाल और देवीय आपदाओं का सामना करने की क्षमता का विकास करें तथा राष्ट्रीय एकता को क्रियात्मक स्वरूप दें। युवाओं में नेतृत्व क्षमता के विकास और राष्ट्र के निर्माण में उनकी सीधी भागीदारी राष्ट्रीय सेवा योजना के जरिए संभव हैं। यह संगठन, सहयोग,समर्थन, सहकार की भावना को विकसित करने में अग्रणी रही है। इस योजना से जुड़े विद्यार्थियों ने पुरातात्विक धरोहर के संरक्षण के लिए भी कार्य किया है। कई प्राचीन किलों के सौंदर्यीकरण और रख-रखाव के लिए युवाओं ने अभिरूचि प्रदर्शित की है। इस पहल से पूरे समुदाय को प्राचीन ऐतिहासिक स्मारकों की हिफाजत का संदेश देने में अच्छी सफलता मिली है। 


 

राष्ट्रीय सेवा योजना के एक अन्य लक्ष्य गीत की
उठें समाज के लिए उठें-उठें

जगें स्वराष्ट्र के लिए जगें-जगें
स्वयं सजें, वसुन्धरा संवार दें। 

हम उठें उठेगा जग हमारे संग साथियों
हम बढे तो सब बढेंगे अपने आप साथियों
जमीं पे आसमान को उतार दें।
स्वयं सजें, वसुन्धरा संवार दें। 

उदासियों को दूर कर खुशी को बांटते चलें
गांव और शहर की दूरियों को पाटते चलें
ज्ञान को प्रचार दें प्रसार दें
विज्ञान को प्रचार दें, प्रसार दें
स्वयं सजें, वसुन्धरा संवार दें। 

उठें समाज के लिए उठें-उठें
जगें स्वराष्ट्र के लिए जगें-जगें
स्वयं सजें,वसुन्धरा संवार दें। 


गीत की हर पंक्ति का हर शब्द जैसे अपने देश की माटी और मानवता के मंगल को समर्पित है। यही तो राष्ट्रीय सेवा योजना का पावन लक्ष्य है। सेवा योजना का विश्वास है कि व्यक्ति का कल्याण सामाज के कल्याण पर निर्भर करता है। इस तरह यह लोकतांत्रिक जीवन पद्धति का उद्घोष करती है। यह निःस्वार्थ सेवा की पक्षधर है। यह दूसरों के दृष्टिकोण करना भी सिखाती है। एनएसएस में रहकर एक स्वयं सेवक की हैसियत से विद्यार्थियों को उस समाज और परिवेश को समझने का अवसर मिलता है जिसके वे अभिन्न हिस्से हैं और जिससे उनका वर्तमान और भविष्य दोनों जुड़े हैं। इससे उनका नजरिया व्यापक होता है, जिससे उनमें सामाजिक सरोकार के साथ सहभागी जीवन जीने की चेतना को नया आयाम मिलता है। उनमें जिम्मेदारी का भाव यानी दायित्व बोध को जन्म मिलता है। 
राष्ट्रीय सेवा योजना नौजवानों में नेतृत्व क्षमता विकसित करती है। आपदाओं का सामना करने का हौसला,राष्ट्रीय एकता और अखंडता को बनाये रखने का ज़ज़्बा और सधे हुए व्यक्तित्व के साथ समाज की सेवा करने की चाहत को गतिमान करने में इसकी बड़ी भूमिका रहती है। उन्मुखीकरण, कैम्पस कार्य, संस्थागत कार्य, ग्रामीण परियोजना, प्राकृतिक आपदा के समय कार्य और राष्ट्रीय दिवस लगन पूर्वक मनाना एनएसएस के बुनियादी पहलू हैं। 

राष्ट्रीय सेवा योजना  स्थापना दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं !








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